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आलेख शादियों की भव्यता में विलुप्त होते हुए संस्कार लेखक - राजकुमार बरूआ भोपाल

 

                                                     लेखक - राजकुमार बरूआ भोपाल 


सन्तुष्टो भार्या भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च

यस्मिन्नेव नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ॥


भारत - पूरी दुनिया में भारत का नाम जब भी लिया जाता है या भारत के बारे में सोचा जाता है तो भारत की संस्कृति, संस्कार मान्यताएं, और अपने धर्म के प्रति समर्पण का भाव ही उसे विश्व में एक अलग पहचान तो देता ही है। साथ ही अपने ज्ञान के बल पर विश्व गुरु की मान्यता भी रखता है।

भारत में हिन्दू विवाह को सबसे पवित्र संस्कारों में से एक माना गया है, हिंदुओं में विवाह को एक संस्कार के रूप में स्वीकार किया जाता है, हमारे संस्कार ही हमें पारिवारिक, सामाजिक व्यवस्था में बांधकर रखते हैं, और कानून का पालन करने में भी हमारी सहायता करते हैं। 

पर वर्तमान में शादियों में अत्यधिक धन खर्च करने का ऐसा बोलबाला है कि लोग अपने संस्कारों को छोड़कर शादी की भव्यता में ज्यादा विश्वास करने लगे हैं और उसे अपनी शान और शौकत से जोड़कर एक विशाल आयोजन में परिवर्तित कर रहे हैं। यहां पर संस्कार बोने साबित हो रहे हैं, और शादियों की चकाचौंध में संस्कार अंधेरे की गर्ग में जाते जा रहे हैं, इस समय शादियों का सीजन चल रहा है कई सदियों का निमंत्रण कार्ड देख कर ही उस शादी में होने वाले खर्च का आप अनुमान लगाया जा सकता हैं, लोग पांच सौ रुपए तक का एक शादी का निमंत्रण पत्र बनाने को भी एक सामान्य बात समझते हैं, शादियों में होने वाले खर्चों की यदि बात की जाए तो इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि लोग अपनी शानो-शौकत को बनाए रखने के लिए कर्ज लेकर भी खर्च करते हैं और शादी को इतना विशाल आयोजन बना देते हैं जिसमें सजावट से लेकर खाने-पीने का खर्चा इतना अधिक होता है कि उस खर्चे से आप कोई एक बड़ा उद्योग स्थापित कर जीवन भर के लिए सैकड़ो लोगों को रोजगार दे सकते हैं। पर यहां तो अपनी नाक को ऊंची रखने के लिए पैसे को पानी की तरह बहाया जाता है जो धनवान लोगों के लिए तो संभव है पर उनकी देखा-देखी मध्यम वर्ग का व्यक्ति भी इस स्पर्धा की दौड़ में दौड़े चला जा रहा है और अपने आप को कर्ज के दलदल में डूबाये जा रहा है। वर्तमान में बैंकों से लोन मिलने की प्रक्रिया भी बड़ी सरल हो गई है जिसका भी लोग बिना सोचे समझे उपयोग कर रहे हैं। शादियों में खाने के इतने प्रकार के व्यंजन बनाए जा रहे हैं जिसको आप एक बार में चखने के लिए भी नहीं ले सकते। खाने की सबसे ज्यादा बर्बादी शादियों में ही होती है लोग भी किसी खाने की सामग्री को लेकर पसंद ना आने पर उसे ऐसे फेंक देते हैं जैसे उसका कोई मूल्य ही ना हो, शादियों में फोटो और वीडियो का स्थान तो वह हो गया है जो अब किसी भी रीति-रिवाज का भी नहीं रहा, दूल्हा और दुल्हन भी वीडियो और फोटो बनवाने में इतना अधिक समय लगने लगे हैं की शादियों में आए हुए लोगों को भी उनसे मिलने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है, यहां बात हम लोगों द्वारा नव-दंपति को आशीर्वाद देने की कर रहे हैं और आशीर्वाद स्वरुप कुछ ना कुछ उपहार देकर उनको अपने नव-दम्पत जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएं देना है। पर वर्तमान में शादियों में स्टेज पर होने वाले नाटक इस कदर बढ़ गए हैं कि ऐसा लगता है कि आप शादी में ना आकर किसी फुहड़ता नौटंकी में आए हैं, इस नौटंकी की वजह से शादी में आए हुए रिश्तेदार और मेहमान दूल्हा-दुल्हन को बिना अपना आशीर्वाद दिये घर लौट आते हैं,और इतना पैसा और इतनी व्यवस्था होने के बाद भी लोग उस शादी की सिर्फ और सिर्फ बुराई ही करते हैं। शादियों में देश के संसाधनों का दुरुपयोग और बर्बादी इस कदर बढ़ गई है कि उसके बारे में कहना ही क्या, पर लोग यह भूल जाते हैं आप संसाधनों की बर्बादी करके किसी और के हिस्से के संसाधनों की चोरी भी करते हो। शादीयों में बेतहाशा खर्च देश के संसाधनों की बर्बादी है जिसका हक किसी को नहीं है। वर्तमान समय में विदेशों से भारत घूमने आने वाले  विदेशी नागरिक भी ताजमहल या उन दिखावटी जगहों को देखने से ज्यादा आज भारत की संस्कृति से जुड़ रहे हैं, मंदिरों में जा रहे है, मठो में जा रहे है और भारत की संस्कृति से अपना परिचय करा रहे हैं और उसको अपना भी रहे हैं, इसलिए हमें भी अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए उससे जुड़कर रहना पड़ेगा और शादियों के महत्व को समझाना पड़ेगा। शादी सिर्फ दो लोगों का मिलान नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलना है समाज की व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चल सके इसके लिए भी शादी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, हिंदुओं में विवाह को एक संस्कार के रूप में स्वीकार किया जाता है। एक जोड़े के आजीवन आध्यात्मिक और शारीरिक मिलन के साथ-साथ दो परिवारों के मिलन के रूप में भी शादी का महत्व है, हिंदू धर्म में विवाह को पवित्र संस्कार माना जाता है प्रेम शाश्वत है, शादी दो शरीर,दो मन, दो हृदय, दो प्राण, और दो आत्माओं के मिलन का पवित्र संस्कार है। कोरोना कल में भी शादियां हुई है भले ही वह एक बहुत बुरा समय था लेकिन उस समय ने हमें जीने के लिए क्या जरूरी है और क्या नहीं इसका महत्व लगभग सबको ही समझा दिया था, कोरोना कल में शादियों का स्वरूप बिल्कुल बदल गया था पर हमने उससे भी कुछ नहीं सीखा और एक बुरे समय की याद को मिटाकर फिर हम अपने दिखावटी जीवन में लौट आए। वर्तमान में पैसा कमाना बहुत ही मुश्किल हो गया है और हम उस पैसे को शादियों के खर्च को कम करके बचा सकते हैं और भविष्य के लिए उन पैसों का सही इस्तेमाल करके अपने भविष्य को भी सुरक्षित कर सकते हैं। नव-दंपति को अपनी गृहस्ती बसाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है तो लोग शादियों में बेतहाशा पैसा खर्च न करके उस पैसे को नवदंपति को देकर उनको एक सुरक्षित और सुंदर जीवन देने में मदद कर सकते हैं तो कोशिश करें इस दिखावटीपन से दूर होकर अपनी संस्कृति को बचाकर अपनी जड़ों को और मजबूत करें और अपने आने वाली पीढ़ियों को एक सुंदर संदेश दे एवं उन्हें अपने संस्कार और संस्कृति से जोड़ें और उसका महत्व समझाएं। और इस व्यवस्था को मजबूत करने में अपना योगदान दें। अपने संस्कारों से जुड़ कर ही हम शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

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